मिट्टी की उर्वरता को कैसे बढ़ाएं

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मिट्टी की उर्वरता को कैसे बढ़ाएं

 मिट्टी के बारे में



   जैसे हमारे देश में अलग-अलग संस्कृतियों पाई जाती है वैसे ही हमारे देश के अंदर मिट्टी भी अनेक रूपों में पाई जाती है इस मिट्टी में कई तरीके की फसलें उगाई जाती है जो किसानों की आय का स्त्रोत बढ़ाती है जितनी ज्यादा मिट्टी उपजाऊ होती है उसमें उतनी ही ज्यादा पैदावार होती है

       मिट्टी में कई सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं जो मिट्टी की उपजाऊपन को बढ़ाते हैं जिससे की अच्छी उपज होती है मिट्टी में कार्बनिक और अकार्बनिक तत्व पाए जाते हैं और अन्य भी कई तरीके के जैविक और अजैविक पदार्थ पाए जाते है।

     जिस तरह से अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छे भोजन की आवश्यकता होती है ठीक उसी तरह से पौधों की अच्छी  वर्द्धी व पैदावार के लिए मिट्टी का उपजाऊपन भी होना बहुत आवश्यक होता है।

मिट्टी की उर्वरता के बारे में जानने से पहले हम जानना चाहते हैं की मिट्टी क्या है (Before knowing about soil fertility, we want to know what is soil?)

   सामान्यतः मिट्टी को ही मृदा कहा जाता है पृथ्वी की सबसे ऊपरी सतह की उथली परतो  को मृदा/मिट्टी कहते हैं जिसका निर्माण मिट्टी से ठीक नीचे चट्टानों के विघटन और उन पर कार्बनिक पदार्थों के फलस्वरूप होता है इसमें अधिकांश वनस्पतियां और जंतु स्थाई रूप से निवास करते हैं।

पौधों वृद्धि के लिए निम्न पोषक तत्वों की निम्नानुसार आवश्यकता होती है (The following nutrients are required for plant growth as follows)

(1) मुख्य पोषक तत्व नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश

(2) गौण पोषक तत्व कैलशियम मैग्निशियम गंधक

(3) सूक्ष्म पोषक तत्व लोहा जिंक कॉपर मैगनीज

(4)  मॉलीब्लेडिनम बोरोन क्लोरीन

मृदा के प्रकार(Soil Types)

(1) जलोढ़ मिट्टी 

(2) 

(3) काली/रेगड़ मिट्टी 

(4) लाल मिट्टी 

(5) लेटराइट मिट्टी 

(6) मरुस्थलीय मिट्टी

 (7) पर्वतीय मिट्टी

मिट्टी की उर्वरता को बनाने के सामान्य तरीके(Common ways to build soil fertility):-

(1) फसल उगाने से पहले मिट्टी को अच्छी तरह से जुताई करना आवश्यक होता है क्योंकि इससे मिट्टी में वायुमंडल से विभिन्न गैसे, धूल कण एवं जल वाष्प मिलते हैं 

(2) मिट्टी में फसलों को एक क्रम में पैदा करना चाहिए और इससे दाल दाल वाली फसलों को आवश्यक ही हो ऊगाना चाहिए जिससे कि मिट्टी में मुख्य पोषक तत्व नाइट्रोजन की पूर्ति स्वत: हो जाए।

(3) गहरी जड़ें और लंबी बढ़ने वाली फसलें उगाने के बाद उथली अथवा कम गहरी जड़े वाली फसलें ऊगाना चाहिए।

(4) अधिक पानी लेने वाली फसलों के बाद कम पानी लेने वाली फसलें काम में लेना चाहिए जिससे कि मिट्टी वापस उर्वरक हो जाए।

(5) अधिक लंबाई वाली फसलों के बाद बोनी पशुओं को गाना चाहिए

(6) मिट्टी में जहां तक हो सके गोबर खाद का उपयोग करना चाहिए

(7) मिट्टी में अर्थात रेतीली मिट्टी में आजकल आधुनिक सिंचाई पद्धति जैसे फव्वारा पद्धति, ड्रिप सिंचाई पद्धति आदि का प्रयोग करना चाहिए जिससे कि पानी की बचत के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा क्षमता भी बनी रहती है क्योंकि ज्यादा पानी देने से मिट्टी में पोषक तत्व खत्म भी होते हैं साथ ही मिट्टी कठोर हो जाती है जिससे कि पौधों की जड़े आसानी से मिट्टी में वृद्धि नहीं कर पाती है।

(8) वर्षा के पानी को एकत्रित करके सिंचाई करना चाहिए इससे वर्षा का पानी ज्यादा लाभदायक होता है बजाय ट्यूबैल या अन्य स्रोतों की बजाय वर्षा का पानी मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है








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